पाठ 15 : पानी का पीछे हटना

परमेश्वर ने नूह को जहाज़ बनाने का आदेश दिया और उसे पृथ्वी के प्राणियों से भर देने को कहा। फिर उसने बारिश भेजी। चालीस दिन और चालीस रात मूसलधार बारिश हुई। पानी पेड़ से ऊपर उठा। यह पहाड़ियों से ऊपर पहुंच गया। पानी धीरे धीरे पहाड़ों की खड़ी पक्षों तक पहुंच गया और फिर उन्हें निगल लिया। परमेश्वर का पूर्ण न्याय सृष्टि के हर हिस्से पर पूरा विजयी था। यह सब मानव जाति द्वारा लाये गए पाप के प्रदूषण और संदूषण से शुद्ध किया गया। जो जीवित था वो केवल तैरता हुआ जहाज़ जिसमें नूह और उसका परिवार था जो सुरक्षित थे।  

 

सारी पृथ्वी एक सौ पचास दिनों तक पानी में डूबी हुई थी। बाइबिल बताती है कि कुछ समय के बाद, परमेश्वर को नूह और उन जानवरों का ध्यान आया जो उस महान जहाज़ में थे। आप को लगता है कि वास्तव में परमेश्वर भूल गए थे की वे वहां हैं? क्या एक दूत ने उसे याद दिलाया होगा? नहीं। बाइबिल जब जब यह बताती है कि परमेश्वर को कुछ याद आया, इसका मतलब अब वो कुछ विशेष करने जा रहा है। परमेश्वर ने पानी पर एक हवा को चलाया। यह शब्द "हवा" परमेश्वर कि आत्मा का वर्णन करती है। सृष्टि के आरम्भ में यही आत्मा के द्वारा उसका निर्माण किया गया था। अब फिर से यही आत्मा अव्यवस्था पर आदेश ला रही थी। पानी धीरे धीरे नीचे जाने लगा। अरारात की पहाड़ी बाढ़ के पानी के ऊपर दिखाई देने लगी। जहाज़ अरारात के ऊपर जाकर टिक गया और साथ ही अन्य पहाड़ों कि चोटियां भी प्रदर्शित हुईं। 

 

जहाज में बनी खिड़की को नूह ने चालीस दिन बाद खोला। नूह ने एक कौवे को बाहर उड़ाया। कौवा उड़ कर तब तक फिरता रहा जब तक कि पृथ्वी पूरी तरह से न सूख गयी। नूह ने एक फाख्ता भी बाहर भेजी। वह जानना चाहता था कि पृथ्वी का पानी कम हुआ है या नहीं। फ़ाख्ते को कहीं बैठने की जगह नहीं मिली क्योंकि अभी तक पानी पृथ्वी पर फैला हुआ था। इसलिए वह नूह के पास जहाज़ पर वापस लौट आयी। नूह ने अपना हाथ बढ़ा कर फ़ाख्ते को वापस जहाज़ के अन्दर ले लिया।सात दिन बाद नूह ने फिर फ़ाख्ते को भेजा। उस दिन दोपहर बाद फ़ाख्ता नूह के पास आयी। फ़ाख्ते के मुँह में एक ताजी जैतून कि पत्ती थी। यह चिन्ह नूह को यह बताने के लिए था कि अब पानी पृथ्वी पर धीरे—धीरे कम हो रहा है। नूह ने सात दिन बाद फिर फ़ाख्ते को भेजा। किन्तु इस समय फ़ाख्ता लौटी ही नहीं।

पहले महीने का पहला दिन था। नूह छः सौ एक वर्ष का था।उसने पहली बार जहाज़ के ऊपर से कवर हटाया। यह एक जन्मदिन के तोहफे जैसा था। दूसरे महीने के सत्ताइसवें दिन तक भूमि पूरी तरह सूख गयी। तब परमेश्वर ने नूह से कहा,“जहाज़ को छोड़ो। तुम, तुम्हारी पत्नी, तुम्हारे पुत्र और उनकी पत्नियाँ सभी अब बाहर निकलो। हर एक जीवित प्राणी, सभी पक्षियों, जानवरों तथा पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी को जहाज़ के बाहर लाओ। ये जानवर अनेक जानवर उत्पन्न करेंगे और पृथ्वी को फिर भर देंगे।”                                             (उत्पत्ति 8:15-17). 

नूह और उसके परिवार के लिए बाहर निकल कर आना कितना अद्बुध था। एक साल से वे उन जानवरों के साथ जहाज़ पर थे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं उस दृश्य का जब सारे जानवर छोड़ दिए गए थे? अपनी स्वतंत्रता को उन्होंने कैसे उछल कूद कर के मनाया होगा। घोड़े कैसे इधर उधर कूदते और भागते होंगे। कुत्ते कैसे भौंकते हुए ज़मीन पर लोट कर मस्ती करते होंगे। परमेश्वर ने उस समय पशु का बलिदान एक सिद्ध उपासना के तौर पर चढाने के लिए मनुष्य के हृदय में डाला होगा। यह अनुष्ठान शुरू से ही आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। परमेश्वर हाबिल के पशु बलि से प्रसन्न हुआ था और जिससे कैन नाराज़ हुआ था।  

कुछ पशु बलिदान के लिए अलग निर्धारित किए गए थे। उन्हें "शुद्ध" कहा जाता था। नूह ने परमेश्वर के लिए एक वेदी बनाई और उसे होमबलि के रूप में शुद्ध पशु की बलि चढ़ाई। 

बाइबिल कहती है; 

"यहोवा इन बलियों की सुगन्ध पाकर खुश हुआ। यहोवा ने मन—ही—मन कहा, “मैं फिर कभी मनुष्य के कारण पृथ्वी को शाप नहीं दूँगा। मानव छोटी आयु से ही बुरी बातें सोचने लगता है। इसलिए जैसा मैंने अभी किया है इस तरह मैं अब कभी भी सारे प्राणियों को सजा नहीं दूँगा। जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक इस पर फसल उगाने और फ़सल काटने का समय सदैव रहेगा। पृथ्वी पर गरमी और जाड़ा तथा दिन औ रात सदा होते रहेंगे।”

 

तब परमेश्वर ने उन्हें वो सब बातें बतायीं जो अब जल प्रलय के पश्चात होंगी। जानवर मनुष्य से डरेंगे। परमेश्वर ने नूह से कहा की मनुष्य अब पशु का मॉस खा सकेगा। इससे पहले, मनुष्य केवल वही खाता था जो उसे पौधों से मिलता था! अब परमेश्वर ने उन्हें मॉस खाने की अनुमति दे दी थी। केवल जिसमें खून था उसे खाने की अनुमति नहीं थी। खून पशु का जीवन था, और उसे खा लेना परमेश्वर के प्रति एक भयानक अपराध था।  

 

परमेश्वर मनुष्य के जीवन की रक्षा करते थे। वह आगे कहता है: 

 

"'... मैं तुम्हारे जीवन बदले में तुम्हारा खून मागूँगा। अर्थात् मैं उस जानवर का जीवन मागूँगा जो किसी व्यक्ति को मारेगा और मैं हर एक ऐसे व्यक्ति का जीवन मागूँगा जो दूसरे व्यक्ति की ज़िन्दगी नष्ट करेगा। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया है।

"'तुम्हें और तुम्हारे पुत्रों के अनेक बच्चे हों और धरती को लोगों से भर दो।”      उत्पत्ति 9:4b-6

परमेश्वर ने नूह को बताया कि हर एक व्यक्ति परमेश्वर की छवि में बनाया गया है। इस ज़बरदस्त उपहार के माध्यम से, प्रत्येक व्यक्ति को उच्च और अकल्पनीय श्रेय दिया गया है! परमेश्वर ने हर एक मानव जाति के साथ स्वयं कि पहचान की है। बिना परमेश्वर को चोट पहुंचाय किसी भी मनुष्य को चोट पहुंचाना असंभव है। 

 

परमेश्वर ने इस बात की घोषणा की, कि जो भी किसी भी इंसान कि जान लेता है उसे परमेश्वर का सामना करना होगा। मानवता कि यह नई दुनिया जल प्रलय से पहले की दुनिया से भिन्न है। जल प्रलय से पहले हो रही हिंसा और हत्या अब बिना सज़ा के नहीं होंगे। मृत्यु का डर शैतान के पीछे चलने वाले लोगों को रोकेगी की वे ऐसे दुष्ट काम कर पाएं। यह उन्हें कोई भी दुष्ट काम करने से रोकेगा। इससे भी बढ़कर, परमेश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी पर न्याय करने के लिए उन्हें जिम्मेदारी दे दी। परमेश्वर ने उन्हें आदेश दिया की वे निर्दोष को बचाएँ और हत्या करने वालों को दंडित करें। एक बार जो वे एक निर्दोष व्यक्ति के जीवन को छीन लेते हैं फिर उसके बाद एक कातिल को फिर से मारने का मौका कभी नहीं मिलना चाहिए। उस शासक या नेता पर हाय जिनको संरक्षण के अंतर्गत रखा गया है! वे परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करते हैं! 

 

परमेश्वर ने जब नूह के माध्यम से मानवता का पुनः आरंभ किया, उन्हें बुद्धि के सहारे रहना था। मनुषय श्रापित और पापी था, और कई शैतान कि संतान के रूप में जियेंगे। वे परमेश्वर पर निर्भरता से रहना नहीं चाहेंगे। वे दुनिया को एक बहुत अधिक शातिर और खतरनाक जगह बनाने का संकल्प करेंगे। 

 

हालात उस वाटिका से बहुत भिन्न थे जो परमेश्वर ने संकल्प किया था। ऐसी जगह जो पूर्णरूप से सुरक्षित और शांत थी, जहाँ  अपने परमेश्वर के संग संगती कर सकते थे, वो जगह एक भुलाय हुए सपने की तरह हो गयी है। मानवता परमेश्वर की शक्ति और सामर्थ में खड़े होने और उसकी निरंतर धार्मिकता में निडर हो कर जी सकता था। लेकिन अब एक लड़ाई पृथ्वी पर हर आत्मा कि गहराई में छेड़ा जा रहा था। परमेश्वर ने मानवता को फिर से शुरू करने के लिए एक ताज़ा मौका दिया था। क्या महान विद्रोह जारी रहेगा? 

 

परमेश्वर की कहानी पर अध्ययन। 

परमेश्वर ने दुष्ट मानवता को और पाप की चरम प्रदूषण को पृथ्वी के ऊपर से धो दिया। नूह के साथ वाचा बांधते समय, परमेश्वर ने यह स्पष्ट किया की वह गंभीर रूप से हर उस व्यक्ति को दंड देगा जो दूसरे की जान लेगा। क्या यह अजीब बात लगती है? क्यों हज़ारों मनुष्यों को खत्म करने परमेश्वर के लिए सही था और मनुष्य के लिए खून करना गलत? क्यों परमेश्वर ने मानव अगुवों को अनुमति दी की वे उन लोगों की जान ले सकते हैं जो खून करते हैं?

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

जल प्रलय के बाद, परमेश्वर ने मानवता को पृथ्वी पर न्याय करने का सबसे उच्च और पवित्र ज़िम्मेदारी दे दी। जल प्रलय से पहले विकार और समाज कि अराजकता को एक नई संरचना मिलेगी जो कमज़ोर की रक्षा करेगी। आप को कैसा लगता है जब आप सुनते हैं कि परमेश्वर मानव जाति के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा करते हैं चाहे वह कोई भी क्यूँ ना हों? आप को कैसा महसूस होता है जब आपको यह पता लगता है की परमेश्वर आपके जीवन कि सुरक्षा करता है? आपको कैसा लगता है यह जान कर की परमेश्वर उनकी रक्षा करता है जिन्हें आप चोट पहुंचते हैं? क्या ऐसी सम्भावना है की आप इस विषय में सोचें की आप क्या करते हैं और कहते हैं? क्या आप यह देख सकते हैं की किस प्रकार परमेश्वर पर विश्वास करने से मनुष्यों के बीच सही व्यवस्था आ जाती है?

 

अपने जीवते परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।  

ऐसी परिस्थिति के विषय में सोचिये जहां लोगों के आपस के बुरे व्यवहार के कारण परमेश्वर को महिमा नहीं मिलती है? क्या वे आपके परिवार में हैं? आपके पड़ोसी? आपका शहर या नगर? आपका देश? क्या आप उसका वर्णन कर सकते हैं? 

 

एक मिनट के लिए बैठ कर सोचिये कि परमेश्वर इस परिस्थिति को कैसे देखता होगा? परमेश्वर कैसे चाहते हैं की वे एक दूसरे के साथ व्यवहार करें? पूरी तौर से उसकी मर्ज़ी को जानने की कोशिश कीजिये। अब उन लोगों के लिए प्रार्थना कीजिये जो उस समस्या में शामिल हैं। परमेश्वर से प्रार्थना कीजिये कि वह उस संघर्ष में प्रवेश करे और न्याय, धर्म, और शांति को लाए। इसमें शामिल हर एक व्यक्ति के पश्चाताप के लिए प्रार्थना कीजिये। प्रार्थना कीजिये की उनमें से प्रत्येक परमेश्वर कि भव्य दया और प्यार के आगे अपना आत्मसमर्पण कर सके।