पाठ 4: परमश्वेर की अनुग्रहकारी योजना: अब्राहम की विशेष वाचा
बार बार फिर से, अपने सिद्ध और सुंदर परमेश्वर पर भरोसा करने के बजाय मनुष्य पाप और बुराई करता रहा। लेकिन परमेश्वर इतना अच्छा है, भले ही मनुष्य उसके विरुद्ध पाप करते रहे, फिर भी वह उन्हें आशीष देना चाहता था। उसकी योजना बहुत अद्भुत थी। बाबुल के सैकड़ों वर्षों बाद, परमेश्वर ने अब्राहम नाम के एक व्यक्ति को एक और वाचा देने के लिए चुना। याद रखें, वाचा एक वादा है। संसार में हजारों लोग कई भाषाएँ बोल रहे थे। महान शहर और कस्बे और गांव थे। इन सभी लोगों में से, परमेश्वर ने विशेष रूप से अब्राहम को एक वादा देने के लिए चुना जो हमेशा के लिए था। वाह। यह वादा क्या था?
परमेश्वर ने अब्राहम को एक पुत्र देने का वादा किया। परमेश्वर ने अब्राहम से कहा कि वह उस पुत्र के द्वारा सभी वंशजों को एक महान राष्ट्र बनाकर पूरी दुनिया को आशीष देगा। वह राष्ट्र दुनिया के सभी अन्य राष्ट्रों के लिए एक महायाजक होगा ।। और परमेश्वर ने ऐसा ही किया अब्राहम के वंश के उस देश को इस्राएल कहा जाता था। दूसरों के लिए आशीष का कारण होने के लिए, परमेश्वर इस्राएल को अपने प्रेम और विश्वास के साथ आशीर्वाद देगा और उन्हें अपना मार्ग सिखाएगा। वह उन्हें अपना वचन देगा ताकि उन्हें सिखा सके कि उन्हें परमेश्वर को किस प्रकार प्रसन्न करना है। उसने उन्हें बाइबल दी और वह उन्हें सिखाएगी कि जो कुछ वे करते हैं उसके द्वारा उन्हें किस प्रकार परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को दिखाना है। बाइबल उन्हें मानव इतिहास के लिए परमेश्वर की योजना के विषय में भी सिखाएगी। परमेश्वर में
उनके विश्वास और उसके प्रति आज्ञाकारिता के द्वारा, इस्राएल राष्ट्र शेष मानवता को परमेश्वर का वचन सिखाकर आशीष देगा। वाह। यह वास्तव में एक बड़ा, महाकाव्य वादा है।
एकमात्र समस्या यह थी कि अब्राहम और उसकी पत्नी सारा के कोई बच्चे नहीं थे। अब्राहम के वंशज कैसे एक राष्ट्र बनेंगे यदि उनके पास एक पुत्र भी नहीं था? परमेश्वर ने अब्राहम से वादा किया कि वह उसे एक पुत्र देगा। तब परमेश्वर ने पच्चीस वर्ष तक अब्राहम से प्रतीक्षा कराई। यह तो एक बहुत लंबा समय है। परन्तु कभी-कभी परमेश्वर अपने विश्वासयोग्य बच्चों से अपने वादों के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कहता है। नूह ने जलप्रलय आने से सौ साल पहले सन्दूक बनाया था। इससे पहले कि अब्राहम की पत्नी उसे एक पुत्र देती, उसने पच्चीस वर्ष प्रतीक्षा की। उन्होंने उसका नाम इसहाक रखा। अंततः अपने पुत्र को अपने हाथों में पकड़ने के लिए वे कितने उत्साहित हुए होंगे!
प्रतीक्षा के उन सभी वर्षों के दौरान, अब्राहम ने बहुत विश्वास दिखाया। उसने परमेश्वर पर भरोसा किया कि जो कुछ उसने कहा है वह उसे पूरा करेगा। अब्राहम ने परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह नहीं किया, उसने उस वादे की प्रतीक्षा की जिसे परमेश्वर ने देने का वादा किया था। परमेश्वर ने कहा कि अब्राहम का महान विश्वास उसकी धार्मिकता का कारण था। परमेश्वर उन सभी लोगों का सम्मान करता है जो इस तरह का विश्वास दिखाते हैं। परमेश्वर के वाचा के या अब्राहम के वादे के एक हिस्से के रूप में, उसने कहा कि उसके पास इतने वंशज होंगे कि वे आकाश में सितारों या रेगिस्तान में रेत के समान होंगे। उसने अब्राहम के वंशजों को रहने के लिए एक विशेष देश देने का वादा किया। यह एक सुंदर स्थान होगा जहां वे याजकों का एक महान राष्ट्र बना सकेंगे। वे वहां परमेश्वर की आराधना करेंगे और उसके वचन को मिलकर पढ़ेंगे। यह अद्भुत स्थान वादे का देश कहलाया गया। परमेश्वर ने अब्राहम से कहा कि इससे पहले ऐसा हो, उसके वंशज मिस्र देश में चार सौ वर्ष तक व्यतीत करेंगे। क्योंकि यह परमेश्वर द्वारा वादा किया गया देश था,अब्राहम और उसके वंशज को विश्वास था कि परमेश्वर उन्हें यह देश देगा, चाहे इसमें बहुत समय लगे!
अब्राहम के वंशज चार सौ वर्षों तक मिस्र में रहते रहे। मिस्र दुनिया का सबसे बड़ा, और शक्तिशाली राष्ट्र था। प्रारंभ में, अब्राहम के वंशज मिस्र के लोगों के साथ अच्छे मित्र बनकर रहे। परन्तु सैकड़ों वर्षों के बाद, अब्राहम के वंशजों की संख्या बढ़ती चली गयी। भले ही वे मिस्र में रह रहे थे, फिर भी वे एक राष्ट्र बनते जा रहे थे, जैसा कि परमेश्वर ने वादा किया था। वे एक लाख से अधिक थे!
मिस्र के फिरौन, (फ़िरीन राजा के समान होता है). ने देखा कि वे कितने बड़ गए थे और इससे वह चिंतित हो गया। क्या होगा यदि उन्होंने मिस्र पर कब्ज़ा कर लिया? ऐसा होने से रोकने के लिए, फ़िरीन ने अत्यंत बुरा करना शुरू कर दिया। उसने अब्राहम के सभी बच्चों को जबरन बंधुआई में डाल दिया। मिस्र के लोगों ने सभी पुरुषों से लम्बे घंटों तक बंधुआई के कठोर परिश्रम करवाया। उन्हें चाबुक से मारा गया और जानवरों की तरह व्यवहार किया गया। फिर फिरौन ने आदेश दिया कि उनके सभी शिशु पुत्रों को मार दिया जाए। यह एक भयानक समय था ।
परमेश्वर ने ये सब देखा, और अपने लोगों को बंधुआई से बचाने के लिए उसके पास एक योजना थी। जब अपने लोगों को मुक्त करके उन्हें वादे के देश में लाने का समय हुआ, तब परमेश्वर ने अपने दास मूसा को बुलाया। उसने मूसा को फ़िरीन के पास भेजा। अब, फिरौन दुनिया के सबसे शक्तिशाली पुरुषों में से एक था। उसके स्वयं के लोग उसे ईश्वर मानकर उसकी पूजा करते थे। उसका सामना करना खतरनाक था परन्तु मा ब्रह्मांड के निर्माता, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सेवा करता था। सारी सृष्टि के परमेश्वर की सामर्थ में होकर मूसा ने फिरौन को अपने लोगों को जाने देने का आदेश दिया।
फ़िरीन हटी था। कोई भी उसे नहीं बता सकता था कि उसे क्या करना है। उसका हृदय कठोर था। उसने परमेश्वर के आदेश के विरुद्ध विद्रोह किया और इन्कार कर दिया। इसलिए परमेश्वर ने मुसा को अब्राहम के वंशजों को मुक्त करने के लिए. फिरौन को मनाने के लिए महान चमत्कार करने के लिए सामर्थ दी। उसने उसकी छड़ी को एक साथ और नील नदी को लहू में बदल दिया। फिरौन का हृदय अभी भी कठोर था। इसलिए शनिशाली चमत्कार मिस्र के लोगों के विरुद्ध और कठोर होते गए। परमेश्वर ने मूसा के द्वारा एक के बाद एक विपत्ति भेजी। उसने लाखो मेंडक भेजे, फिर कुटकियों। इससे फिरोन का मन नही बदला, इसलिए पीडाए और भी कठोर था। इसलिए शक्तिशाली चमत्कार मिस्र के लोगों के विरुद्ध और कठोर होते गए। परमेश्वर ने मूसा के द्वारा एक के बाद एक विपत्ति भेजी। उसने लाखों मेंढक भेजे, फिर कुटकियाँ। इससे फ़िरीन का मन नहीं बदला, इसलिए पीड़ाएं और भी बदतर हो गई। उसने टिड्डी और ओले भेजे। तब मिस्र के लोगों के पूरे शरीर पर महान, दर्दनाक फोड़े, या घावों से शाप दिया गया। फ़िरौन ने अभी भी परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया। अंत में, परमेश्वर ने एक दूत भेजा जिसने रात के अंधेरे में आकर मिस्र के सभी ज्येष्ठ पुत्रों को मार डाला। फ़िरीन का पुत्र भी मर गया। मित्र के सिंहासन के उत्तराधिकारी मर गए थे। फ़िरीन ने अंततः मूसा और परमेश्वर के लोगों को जाने की अनुमति दे दी।
मूसा ने लोगों को मिस्र से बाहर ले जाने में नेतृत्व किया। वे उस देश के रास्ते जा रहे थे जिसे परमेश्वर ने चार सौ साल पहले अब्राहम से वादा किया था। उस देश की ओर जाते समय, परमेश्वर ने अब्राहम के इन वंशजों को, जो इस्राएल के राष्ट्र कहलाते थे, एक महान मरुभूमि में से लेकर आया। अब तक, इस्राएल राष्ट्र में दो लाख से अधिक लोग हो चुके थे। क्या आप अपने परिवारों और जानवरों और तम्बुओं के साथ लोगों के विशाल समूह की जो मरुभूमि मे जा रहे हैं, कल्पना कर सकते हैं? परन्तु परमेश्वर ने मरुभूमि में उनकी अगुवाई की। ये उसके विशेष चुने हुए लोग थे, और वह उनके बहुत निकट था। उसने प्रति दिन बादल में और प्रति रात आग के खंभे में अपनी उपस्थिति के द्वारा उनकी अगुवाई की और उनका मार्गदर्शन किया। क्या यह देखना आश्चर्यजनक नहीं होगा?