पाठ 15: परमश्वेर की उपस्थिति फिर से आती है :आत्मा का अभिषेक
जब शिष्य अपने प्रभु को आकाश में उठते देख रहे थे, तो स्वर्गदूतों ने आशा के महान शब्द कहे। एक दिन वह उसी पहाड़ी पर लौटेगा, और जब वह लौटेगा, तो सब कुछ हमेशा के लिए बदल जाएगा। जब शिष्य यरूशलेम वापस लौट रहे थे तब ये क्या सोच रहे थे अगले दस दिनों के लिए शिष्यों ने अपने परमेश्वर के शब्दों पर विचार किया। उसने उनसे कहा था कि उन्हें उसकी आत्मा की प्रतीक्षा करनी होगी जिसे वह उनके लिए भेजेगा। वे नहीं जानते थे कि यह कैसे होगा, परन्तु उन्होंने जाना कि उनके गुरु ने हमेशा वह किया जिसके विषय में उसने उन्हें बताया था। यीशु की मां मरियम वहां दूसरी महिलाओं के साथ थी जो उसके पीछे चलती थी। यीशु के भाई भी कई अन्य विश्वासयोग्य लोगों के साथ थे। कुल मिलाकर, 120 शिष्य उस आशा के लिए ठहरे हुए थे जिसका उसने उनसे वादा किया था। उन्होंने अपना पूरा समय प्रार्थना में बिताया, यह जानकर कि वह जो पृथ्वी पर से चला गया था वह अब स्वर्ग में था, और उनके प्रत्येक शब्द को सुन रहा था जो ते बोल रहे थे वे अपने प्यारे यीशु से बात कर रहे थे। जब वे प्रतीक्षा कर रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे, तो वे सोच रहे होंगे कि आगे क्या होगा। वे परमेश्वर के साथ कितनी एक अविश्वसनीय यात्रा करने जा रहे थे!
एक दिन जब वे प्रतीक्षा कर रहे थे, पतरस उनके बीच खड़े होकर किसी समस्या के विषय में बात करने लगा। यीशु की मृत्यु से पहले बारह शिष्य थे। तब यहूदा ने
परमेश्वर से धोखा किया और पैसों के लिए उसे याजकों के हाथ सौंप दिया था। यहूदा ने पैसे लिए और एक खेत खरीदा, जहां वह गिर कर मर गया था। उसके सारे अंदरूनी अंग भूमि पर फट कर फैल गए। यरूशलेम में हर कोई इसके विषय में बात करता था कि जिस व्यक्ति ने यीशु को धोखा दिया था, वह इतनी भयानक मौत मरा । उन्होंने उस भूमि का नाम लहू का मैदान रखा ।
पतरस ने कहा कि उन्हें यहूदा के स्थान पर एक शिष्य के रूप में किसी को खोजने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पवित्र आत्मा ने पुराने नियम में दाऊद राजा के द्वारा भविष्यवाणी की थी कि यहूदा की जगह लेने के लिए किसी नए व्यक्ति को चुना जाएगा। शिष्यों के लिए पुराने नियम की भविष्यवाणियों पर ध्यान देना अति महत्वपूर्ण था। यह परमेश्वर का वचन था, और जो कुछ परमेश्वर ने कहा कि होगा वह वास्तव में होने वाला था! वे अतीत के पवित्र लोगों के समान बनना चाहते थे जो तुरंत आज्ञा मानते थे ।
जो भी यहूदा के स्थान में आता है, वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो यीशु की सेवकाई में शुरुआत से ही यीशु के पीछे चला हो। शुरुआत में यीशु और उसके शिष्यों के साथ रहने वाले दो पुरुष बर-सवा और मत्तियाह थे। शिष्यों ने प्रार्थना की और परमेश्वर से माँगा कि वह उन्हें उस व्यक्ति को दिखाए जो यहूदा के स्थान पर होगा। परमेश्वर इन पुरुषों के विचारों और दिलों को अन्य किसी से भी बेहतर जानता था । मत्तियाह को चुना गया और ग्यारह प्रेरितों में जोड़ा गया।
यीशु के स्वर्ग में चले जाने के दस दिन बाद पिन्तेकुस्त नामक एक महान यहूदी पर्व का दिन आया। प्रति वर्ष, रोम के सभी यहूदी लोग तीर्थयात्रा पर छुट्टियों का जन मनाने के लिए अपने परिवारों के साथ यरूशलेम आते थे। यह यहूदी लोगों का महान, पवित्र शहर था। इस पिन्तेकुस्त पर, मसीह के सभी शिष्य एक ही स्थान पर एक साथ बैठे थे। वे अभी भी अपने प्रभु के जी उठने के बाद उसकी आत्मा के भेजे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे, जैसा उसने वादा किया था। उन्हें नहीं मालूम था कि इसका क्या अर्थ था, लेकिन वे यह जानते थे कि यह विशेष था।
अचानक, स्वर्ग से एक गर्जन की तरह एक महान आवाज़ उस स्थान से गुज़री जहां वे थे। जब उन्होंने ऊपर देखा, तो हवा में आग की सी जीभें दिखायी दीं। वे फटती हुई दिखाई दी और प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर एक झिलमिलाते दीपक की तरह आ ठहरी। यह पवित्र आत्मा था जिसे यीशु ने वादा किया था। यह वास्तव में स्वर्ग से था!
इतिहास में यह कैसा एक अद्भुत समय था। यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान पृथ्वी पर जीवन का एक बड़ा मोड़ था। पूरी एक नई पीड़ी की शुरुआत हो चुकी थी । मानवता परमेश्वर से अलग हो गया था। वे एक भयानक अभिशाप के तहत थे। परन्तु अब वे मुक्ति पा सकते थे। मसीह ने कीमत चुका दी थी, और अब वह एक नया काम शुरू करने जा रहा था। परमेश्वर ने अपनी आत्मा उन सभी के दिल में डालने के लिए भेजी जिन्होंने यीशु मसीह पर विश्वास किया था। उस पल में, यीशु के सभी 120 शिष्य जो चुपचाप प्रार्थना कर रहे थे, चल रहे थे, वे परमेश्वर की आत्मा के चलते फिरते मंदिर बन गए। वे एक पूरी तरह से नए मनुष्य के समान हो गए! परमेश्वर और उसके बच्चों के बीच एक नया बंधन था। एक दूसरे के साथ परमेश्वर के बच्चों के बीच एक नया बंधन बन्ध गया था। वे सभी भरे हुए और एक साथ अलग ठहराए गए थे। वे अब एक परिवार थे।
ऊपरी कोठरी में बैठे एक सौ बीस विश्वासियों ने परमेश्वर की पवित्र कलीसिया की शुरुआत की। वे संसार पर मसीह के देह थे। परमेश्वर की महान मुक्ति कि योजना जो पूरे ब्रह्मांड के लिए थी. वे उसका शुरुआत थे । बदलाव लाने की शक्ति को जो क्रूस पर मसीह ने दिखाया, उसकी शुरुआत हो गई थी! यह समय के अंत तक फैलता रहेगा और प्रकाश और आनंद और स्वतंत्रता लाता रहेगा जब मसीह सब कुछ नया कर देगा!
जब आत्मा शक्ति के साथ कार्य कर रही थी. वे अन्य भाषा बोलने लगे। उन्हें उन भाषाओं को बोलने की क्षमता दी गई थी जिन्हें वे पहले कभी नहीं जानते थे! जैसे जैसे वे एक साथ उठकर सड़कों पर लोगों के झुंड में शामिल हो गए, वे आत्मा से भरकर बहुत आनन्दित होने लगे। उसने उन्हें मसीह के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए प्रेरित किया वादा किया हुआ मसीहा आ गया था! यरूशलेम में सब जानेंगे!
मसीह के चेले सड़कों पर आत्मा से भर कर निकल पड़े। पिन्तेकुस्त के लिए आए आगंतुकों ने रोम और एशिया और मिस्र से यात्रा की थी। बहुत से लोग यरूशलेम चले गए, लेकिन कई अन्य लोग केवल इस यहूदी पर्व के लिए यात्रा करके आए थे। वे कई अलग-अलग भाषाएँ बोलते थे ।
उत्साही प्रेरितों के चारों ओर एक भीड़ इकट्ठा हुई। जब उन्होंने उन्हें बोलते सुना, तो उन्होंने जाना कि वे वह सब समझ रहे हैं जो वे बोल रहे थे। यह कैसे संभव था कि ये लोग उन स्थानों की भाषाओं में बात कर पा रहे थे? इन आम, अशिक्षित यहूदियों ने कैसे सीखा? कुछ लोगों को इतना आश्चर्य था कि वे नहीं समझ पाए. परन्तु दूसरों ने केवल उनकी हंसी उड़ाई। वे हँसे और कहा कि प्रेरितों ने नशा किया होगा!
पतरस भीड़ के सामने खड़ा हुआ, और ग्यारह उसके साथ खड़े हुए। इस पल से पचास दिन पहले, यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था। उस भयानक दिन पर, जब याजक यीशु से पूछताछ कर रहे थे और उसे पीट रहे थे, तब पतरस ने झूठ बोला और कहा कि वह यीशु को बिल्कुल नहीं जानता था। वह डर गया था कि यदि उसने माना कि वह यीशु का शिष्य है, तो वे उसे भी पीटेंगे। तीन बार अलग-अलग समय पर उससे पूछा गया कि क्या वह यीशु का चेला था, और उसने तीनों बार इनकार कर के कहा कि वह यीशु को बिलकुल नहीं जानता है।
पतरस ने यीशु के साथ हर जगह जाकर तीन साल बिताए थे, और बार बार वह यही वादा करता रहा कि चाहे कुछ भी हो जाए वह यीशु के पीछे चलता रहेगा। फिर भी उस रात जब यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण था, पतरस की वफ़ादारी विफल रही। तीसरी बार इनकार करने पर, एक मुर्गे ने बांग दिया। पतरस ने ऊपर आँखें उठायीं और देखा कि यीशु उस कमरे से उसकी ओर देख रहा था जहाँ उसे अपमानित और पीटा जा रहा था। पतरस शर्म और दु: ख से भर गया था। वह वहां से भाग गया। तब उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया। यीशु के जी उठने से पहले का समय पतरस के लिए कितना भयानक था। न केवल उसने इस व्यक्ति को खो दिया था जिसने उसे जीवन और आशा और उद्देश्य दिया था, उसने उसे सबसे ज़रूरत के समय पर धोखा दिया था।
परन्तु यह अंत नहीं था। यीशु फिर से जी उठा। यह व्यक्ति जो बीमारी को ठीक कर सकता था और समुद्र को नियंत्रित में कर सकता था, उसने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। अचानक, यीशु ने जो कुछ कहा था, वह सब कुछ नए तरीके से समझ में आने लगा था। पतरस ने देखा कि उसका मित्र और शिक्षक वास्तव में परमेश्वर का पुत्र था, और पतरस इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण कहानी में उसके साथ पकड़ा गया था! फिर भी पतरस उस भयानक काम को नहीं भूल पाया जो उसने यीशु के साथ किया था। यीशु भी नहीं भूला था। एक दिन, यीशु गलील सागर के किनारे पतरस को साथ ले गया। यह वही जगह थी जहां यीशु ने पतरस को अपना शिष्य होने के लिए बुलाया था। वीशु ने उससे पूछा, "क्या तू इनसे बढ़कर मुझसे प्रेम रखता है?" पतरस ने कहा, "हाँ प्रभु तू जानता है कि मैं तुझसे प्रीती रखता हूं।" पतरस का दिल कितना टूट गया होगा जब यीशु उससे इस प्रकार पूछ रहा था। यीशु ने कहा, "मेरे मेमनों को चरा।" यीशु ने फिर से उससे पूछा, "हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रेम रखता है?" पतरस अपने दिल में जानता था कि वह वास्तव में यीशु से प्रेम करता था। चाहे वह दबाव में आकर कितना विफल रहा उसका प्यार झूठ नहीं था। उसे मालूम था कि यीशु यह भी जानता था, क्योंकि यीशु सब कुछ जानता था। तब उसने कहा, "हाँ प्रभु, तू जानता है कि मैं तुझसे प्रीती रखता हूँ।" यीशु ने उत्तर दिया, "मेरी भेड़ों को
चरा ।" तीसरी बार यीशु ने पूछा, हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीती रखता है?" पतरन उदास हो गया कि यीशु ने उससे तीन बार पूछा। उसने कहा,
"हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझसे प्रीती रखता हूँ ।" यीशु ने फिर से पूछा, " मेरी भेड़ों को चरा । "
अब, पिन्तेकुस्त के उस सामर्थी दिन पर, पतरस पवित्र आत्मा की सामर्थ से भर कर उसी शहर में, जहां मसीह की हत्या हुई थी, खड़ा हुआ। बहुत से लोग जिन्होंने उसकी मृत्यु के लिए योजना बनाई और साजिश रची थी, वहां उपस्थित थे। बहुत बड़ी भीड़ उत्साहित और उल्लाह के साथ चिल्ला रही थी, और यीशु जब अपना क्रूस गोल्गोथा को ले जा रहा था, पतरस के बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन पतरस वही व्यक्ति नहीं था जैसा वह यीशु की मृत्यु के दिन था। उसका मित्र मरे हुओं में से जी उठा था, और अब पतरस जीवित परमेश्वर की आत्मा से भरा हुआ था । उसने इस्राएल की खोई हुई भेड़ की ओर देखा, और साहस और जीवन के वचन बोलने के लिए तैयार हो गया।