पाठ 4 : निर्माण के चौथे और पांचवां दिन
पहले तीन दिन परमेश्वर ने सुंदरता को उंडेलते हुए प्रकाश, आकाश, भूमि और समुद्र को तैयार किया। उन्होंने वो सभी घास और वृक्ष बनाये जो पृथ्वी को नरम और सुंदर बनाते हैं। जब हम निर्माण की कहानी को पढ़ते हैं तो यह कितना आश्चर्यजनक लगता है कि उनके लिए यह सब कर पाना कितना सरल है! इस विशाल ब्रह्मांड को बनाने में उनका पसीना नहीं बहा न वे तनाव में थे और ना ही उन्हें परिश्रम करना पड़ा। वह अपनी पूर्ण शक्ति के नियंत्रण और सामर्थ में बहुत आराम से थे। कुछ भी नहीं से, उन्होंने केवल अपनी इच्छा की घोषणा करके सब कुछ बनाया।
निर्माण के पहले तीन दिनों के दौरान, परमेश्वर के भव्य मंदिर के बाहरी ढांचे का गठन किया गया था। अब वह उज्ज्वल, शक्ति और जीवन से भर जाने के लिए तैयार था। स्वर्गदूतों के श्रद्धायुक्त भय की कल्पना कीजिये, जब उन्होंने अपने स्वामी को ऐसे आकस्मिक, उल्लेखनीय बातें करते देखा।
"तब परमेश्वर ने कहा,“आकाश में ज्योति होने दो। यह ज्योति दिन को रात से अलग करेंगी। यह ज्योति एक विशेष चिन्ह के रूप में प्रयोग की जाएंगी जो यह बताएंगी कि विशेष सभाएं कब शुरू की जाएं और यह दिनों तथा वर्षों के समय को निश्चित करेंगी। पृथ्वी पर प्रकाश देने के लिए आकाश में ज्योति ठहरें” और ऐसा ही हुआ। तब परम पिता परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं। उन्होंने उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर राज करने के लिए बनाया और छोटी को रात पर राज करने के लिए बनाया। परमेश्वर ने तारे भी बनाए। परमेश्वर ने इन ज्योतियों को आकाश में इसलिए रखा कि वे पृथ्वी पर चमकें और साथ में वह दिन तथा रात पर राज करें। इन ज्योतियों ने उजियाले को अंधकार से अलग किया और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।
तब शाम हुई और सवेरा हुआ। यह चौथा दिन था।
चौथे दिन, परमेश्वर ने उस शानदार प्रकाश को लिया जो उनके वचन से पहले दिन फूटा था और इसे बहुत महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया था। वे आकाश में दिखने वाला महिमायुक्त प्रकाश था। हम उन्हें सूरज,चाँद और सितारे कहते हैं। परमेश्वर ने इन ताकतवर, राजसी क्षेत्रों को बनाया और ब्रह्मांड के रिक्त स्थान की गति में उन्हें स्थापित कर दिया।
लेकिन क्यों परमेश्वर ने उनके नाम नहीं कहे? उन्होंने आकाश को नाम दिया, सूरज या चाँद या सितारे क्यों नहीं? हम सोचते हैं कि एक समय आएगा जब सारी जाती के लोग सूरज और सितारों की पूजा करने की कोशिश करेंगे। हजारों साल के लिए, पृथ्वी पर सैकड़ों लोग आकाश की इन रोशनी को देखकर भविष्य जानने का प्रयास करेंगे। वे उनकी ओर से सहायता और शक्ति पाने के लिए निर्भर होंगे। वे उस परमेश्वर की उपासना ना करके जिसने सब कुछ सृजा, इन शक्तियों की उपासना करेंगे।
परमेश्वर आरम्भ से ही यह सिखा रहे थे कि ये चीज़ें भले ही शानदार उपहार हैं और अच्छी हैं, परन्तु वे ईश्वर नहीं हैं।केवल परमेश्वर ही हमारी मदद कर सकते है, और केवल वह ही भविष्य जानते है। रात आकाश के गहरे अंधकार में सितारों की उज्ज्वल, गायन सौंदर्य परमेश्वर के लिए हमारे प्यार को गहरा कर सकता है।
ऐसी महिमामय चीजें बनाने के लिए क्या ही अद्भुत परमेश्वर है। सूर्य की गर्मी और प्रकाश के हम आभारी ज़रूर हैं परन्तु हमें उसकी उपासना नहीं करनी चाहिए। चाँद की चमकदार चमक हमारे मन को परमेश्वर की शांति से भरता ज़रूर है परन्तु चाँद हमें शांति कभी नहीं दे सकता। परमेश्वर इसी प्रकार कार्य करते हैं। उन्होंने इसीलिए इन सबको नाम नहीं दिया क्यूंकि वह यह दिखाना चाहते थे कि इन चीज़ों को पास कोई भी नियंत्रण की शक्ति नहीं है। वे केवल उनकी ओर से प्रकाश का उपहार हैं!
संसार की रचना के पहले दिन, ज्योति और अंधकार के द्वारा समय का विभाजन, रात और दिन के रूप में हुआ। अब चौथे दिन पर, इस शानदार रोशनी से पृथ्वी पर जीवन की महान समय अवधि को दिखाएगा। महीनों को चंद्रमा के बदलते चेहरे से चिह्नित किया जाता है। सितारों के परिवर्तित होने से भिन्न भिन्न मौसम में बदलाव आता है। पृथ्वी की गति से एक वर्ष दूसरे वर्ष से विभाजित होता है। जीवन का चक्र इन बातों से समय पर किया जाएगा; वसंत ऋतु में पशुओं का नया जन्म, भोजन के लिए फसलों का बोना और सर्दियों की ठंड के दिन ये सब परमेश्वर की शानदार योजना द्वारा निर्धारित किया जाएगा। परमेश्वर पृथ्वी पर जीवन के सभी आदेश और संरचना लाने के लिए समय के साथ साथ प्रकाश और अंधकार को लाए।
"तब परमेश्वर ने कहा,“जल, अनेक जलचरों से भर जाए और पक्षी, पृथ्वी के ऊपर वायुमण्डल में उड़ें।” इसलिए परमेश्वर ने समुद्र में बहुत बड़े—बड़े जलजन्तु बनाए। परमेश्वर ने समुद्र में विचरण करने वाले प्राणियों को बनाया। समुद्र में भिन्न—भिन्न जाति के जलजन्तु हैं। उन्होंने इन सब की सृष्टि की। परमेश्वर ने हर तरह के पक्षी भी बनाए जो आकाश में उड़ते हैं। उन्होंने देखा की यह अच्छा है। परमेश्वर ने इन जानवरों को आशीष दी, और कहा,“जाओ और बहुत से बच्चे उत्पन्न करो और समुद्र के जल को भर दो। पक्षी भी बहुत बढ़ जाएं।”
तब शाम हुई और सवेरा हुआ। यह पाँचवाँ दिन था।
अब परमेश्वर के गुंबददार आकाश में उड़ने वाले पक्षी थे और महान समुद्र में मछली। अपनी रचनात्मक शक्ति के द्वारा उन्होंने मछली को पानी के माध्यम से साँस लेने के लिए और हवा के माध्यम से साँस लेने के लिए पक्षियों को बनाया, फिर भी सब के पास जीवन की सांस थी! परमेश्वर ने पहले से ही पक्षियों के लिए पूरी पृथ्वी को पेड़ों को भर दिया और मछली के लिए महासागरों में, समुद्री घास की राख के जंगलों से भर दिया ताकि वे उन्हें खा सकें और खेल सकें।
तब परमेश्वर ने इन प्राणियों को शक्ति दी की वे अंडे देकर नए, जीवंत, प्रचुर मात्रा में जीवन को बना सकें। जिस प्रकार एक पेड़ के बीज से वही वृक्ष निकलता है, उसी तरह मछली के अंडे से मछली प्राकृतिक होती है। परमेश्वर ने अपनी बुद्धि से हर एक प्राणी की रचना की। उन्होंने बोलने से ही हवा और समुन्दर में जान डाल दी। ये सब कुछ उनकी सिद्ध इच्छा के द्वारा हुआ, और इसलिए वे एक गहरा,अद्भुत और अच्छा कार्य था!
परमेश्वर की कहानी पर अध्ययन।
क्या यह आश्चर्यजनक नहीं की उसी दिन परमेश्वर ने अंतरिक्ष और प्रकाश के साथ साथ समय को भी बनाया? प्रत्येक मिनट, यहां तक कि जिस समय आप सो रहे हैं, वो घंटा भी परमेश्वर द्वारा ठहराया गया है और लगातार उनके द्वारा सशक्त हैं! समय को संभालने के साथ साथ वो हर एक के प्रति वफ़ादार है।
अपनी दुनिया, परिवार और स्वयं पर लागू करना।
परमेश्वर ने समय दिया और वह उनका ही है। वो हमें जीवन का समय देते है, और वह उसे हमसे वापस देने को भी कहते है। वो चाहते है कि हम समय को उनकी महिमा के लिए प्रयोग करें! सोचिये आप अपने समय को कैसे बिताते हैं? क्या कोई ऐसा समय है जो आप बर्बाद करते हैं और आपको अपने उद्धारकर्ता के सामने स्वीकार करने की जरूरत है? क्या सप्ताह का कोई ऐसा समय हैं जब आप विशेष ख़ुशी से भरे हों जिससे की आप अपने आप को परमेश्वर के क़रीब महसूस करते हैं?
अपने जीवते परमेश्वर के प्रत्युत्तर होना।
आप जब पूरे सप्ताह के बारे में सोचते हैं तो उसे प्रार्थना में अपने परमेश्वर के आगे लेकर आइये। वो चाहते है की आप अपने समय को उनके आगे समर्पण कर दें। उनसे पूछें कि वो कैसे आपके समय को किसी विशेष रूप में उपयोग करना चाहते है। उनसे पूछिये की क्या वह खुश है जिस तरह से आप अपने समय का उपयोग करते हैं? उनके आगे शांत हो कर रहें और यह जान लें की वो आपकी समझ के अनुसार आपको उत्तर देंगे। आप किस तरह अपने परिवार के साथ मिलकर परमेश्वर की सेवा करते हैं? एक परिवार के रूप में, क्या आप उनकी इच्छा के विषय में एक दूसरे के साथ बात-चीत करते हैं?