पाठ 9: विश्वासहीन इस्राएल और उनका विश्वायोग्य परमेश्वर: उनका आने वाला मसीहा
परमेश्वर के द्वारा इस्राएल के लोगों को दिए गए सभी वादे और आशीषें देने के बाद ऐसा लगता था कि वे खुश होकर इन सभी नियमों का ध्यानपूर्वक पालन करेंगे। कभी-कभी इस्राएल देश ने आज्ञा तो मानी। परन्तु अधिकतर समय उन्होंने अपने परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह किया। उनके हृदय उसके विरुद्ध हो गए थे। सभी शहर पाप और शर्मनाक व्यवहार के साथ जी रहे थे। उन्होंने पश्चाताप नहीं किया, वे परमेश्वर से प्रेम नहीं करते थे, और वे एक दूसरे से प्रेम नहीं करते थे। उन्होंने परमेश्वर के वाचा को नहीं रखा। परन्तु परमेश्वर अनुग्रहकारी और दयालु है। वह विलंभ से क्रोध करता है और अति प्रेमी है। इसलिए परमेश्वर उन्हें चेतावनी देने के लिए इस्राएल से पुरुषों का चयन विशेष संदेशवाहक के रूप में करेगा । उन्हें भविष्यद्वक्ता कहा जाता था। उन्होंने इस्राएलियों को चेतावनी दी कि यदि उन्होंने अपने तरीकों को नहीं बदला, तो परमेश्वर उनके ऊपर अपना न्याय भेजेगा। उसने मूसा को इसी न्याय की चेतावनी दी थी। जो शब्द इन भविष्यवक्ताओं ने बोले थे वे उनके स्वयं के शब्द या विचार नहीं थे। वे परमेश्वर के ही वचन थे जो उसने स्वर्गीय सिंहासन से बोले ।
यिर्मयाह ने भविष्यवाणी की कि परमेश्वर उन्हें उस देश से हटाने जा रहा था। उसने चेतावनी दी कि बाबुल राष्ट्र इस्राएल के राष्ट्र को जीतने के लिए आ रहा था। वे उनके शहरों और गांव को नष्ट कर देंगे, उनके खेतों को जला देंगे, और लोगों को नष्ट कर देंगे। जो लोग बच जाएंगे उन्हें जबरन वादे के देश को छोड़ना होगा और विदेशों में विदेशी और अजनबी बनकर रहना होगा। यिर्मयाह रोया क्योंकि उसने उन भयानक बातों के विषय में लोगों को चेतावनी दे दी थी जो होने वाली थीं। विवाह पूरी तरह सही था। इखाएल राष्ट्र मानचित्र से मिटा दिया गया था। यरूशलेम का शहर बर्बाद कर दिया गया था, मंदिर नष्ट हो गया था, और उन्होंने वाचा के सन्दूक को खो दिया। वह कभी नहीं मिला। इस्राएल के लोग या तो मारे गए या फिर दुनिया भर में फैल गए थे। पूरी दुनिया में परमेश्वर के लिए आशीष बनने के बजाय, इस्राएल एक अभिशाप बन गया था।
परन्तु इस्राएल के लिए परमेश्वर की योजना समाप्त नहीं हुई थी। वह अब्राहम और दाऊद राजा के साथ अपनी अनन्त वाचा बनाए रखेगा। विश्वास के साथ, यिर्मयाह ने उनसे परमेश्वर के एक और बादे के विषय में भविष्यवाणी की। भले ही उन्हें उस देश से बाहर ले जाया जाएगा, वे एक दिन वापस आ जाएंगे। परमेश्वर उन्हें उस देश से हटा देगा और उन्हें न्याय के रूप में बहुत क्लेशों से गुजरना होगा। परन्तु न्याय के द्वारा, उनके हृदय शुद्ध हो जाएँगे। कोई भी परेशानी में नहीं पड़ना चाहता है। परन्तु यदि दंडित होने से हम बेहतर हो सकते हैं, और वैसे हो जाएँ जैसा परमेश्वर ने हमें बनाया था, तब न्याय वास्तव में एक आशीर्वाद है!
परमेश्वर ने इस्राएल में 80 अवशेष, या विश्वासयोग्य छोटे से समूह को उस देश में वापस लाने का वादा किया। ये यरुशलेम और मंदिर का पुनर्निर्माण करेंगे | परमेश्वर ने यिर्मयाह और यहेजकेल भविष्यवक्ताओं के द्वारा भी वादा किया कि वह एक नई वाचा बनायेगा। परमेश्वर उनके कठोर पत्थर हृदयों को लेकर उन्हें मांस का हृदय देने जा रहा था। भविष्यवक्ता यशायाह ने उन्हें एक विशेष, अभिषिक्त व्यक्ति के बारे में बताया जिसे परमेश्वर भेजेगा। वह उनका मसीहा होगा, और वह इसाएल राष्ट्र को बचाएगा और अपना राज्य बहाल करेगा। वे महान आशीर्वाद और समृद्धि के साथ रहेंगे और सभी अन्य राष्ट्रो पर शासन करेंगे।
बाबुल ने आकर यरूशलेम को नष्ट किया और अधिकांश इसाएल को बंदी बना लिया । परन्तु सत्तर वर्षों के बाद, जैसा कि परमेश्वर ने यिर्मयाह के द्वारा वादा किया था, इस्राएलियों को बादे के देश में वापस भेजा। उन्होंने मंदिर का पुनर्निर्माण किया, हालांकि यह मूल से बहुत छोटा और कम मूल्य का था। उन्होंने सावधानी से नियम का पालन करना शुरू किया, और वे परमेश्वर के उन वादों के लिए तत्पर थे जिनके विषय में भविष्यवक्ताओं ने बताया था। वे जानते थे कि परमेश्वर और बुद्ध करने जा रहा है। मसीहा अब तक नहीं आया था। वे अभी भी नियम और पुराने वाचा के तहत थे जो परमेश्वर ने मूसा को दिए थे। वे अभी भी अपने पापों के लिए बलिदान चढ़ा रहे थे। वे उस देश में वापस आ गए थे, परन्तु जल्द ही एक भिन्न राष्ट्र उन पर शासन करने लगा। रोमी साम्राज्य ने उन पर शासन किया और उन्हें बताया कि उन्हें आज्ञा दी कि उन्हें क्या करना है। यहूदियों को रोमियों को कर चुकाना पड़ा और उनके नियमों का पालन करना पड़ा।
इस्राएल के लोग किसी अन्य सत्ता द्वारा शासन किये जाने को पसंद नहीं करते थे । रोमी परमेश्वर के मार्ग पर नहीं चलते थे। यहूदी वादा किए हुए मसीहा की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने सोचा कि वह आएगा और युद्ध में रोमी सरकार को पराभव करने के लिए एक सेना खड़ी करेगा। उन्होंने सोचा कि वह उन्हें सभी राष्ट्रों पर विजय देगा जिस प्रकार भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की थी। उन्हें समझ में नहीं आया कि मसीहा कौन होगा या वह वास्तव में कैसे आएगा, परन्तु उनकी महान आशा वही था।